आर्य और काली छड़ी का रहस्य-31
अध्याय-10
साजिश का पर्दाफाश
भाग-3
★★★
आचार्य ज्ञरक के पीछे गिरने के बाद उनकी छड़ी उनके हाथ से गिर गई। वह पत्थरों के ऊपर गिरे थे तो उन्हें चोट भी लगी। आर्य और आयुध यह सब देख रहे थे। हिना काफी पहले दूर जा गिरी थी तो वह वहीं से यह सब देख रही थी। आयुध ने अपने मुट्ठी को भिंचा और अचार्य वर्धन की तरफ बढ़ा। मगर आचार्य वर्धन ने उसे अपने एक हल्के वार से ही संभाल लिया। उनके एक हल्के वार ने आयुध को भी दूर फेंक दिया था।
तीनों को दूर फेंकने के बाद अब अचार्य वर्धन के सामने सिर्फ आर्य खड़ा था। अभी उसके दिमाग में यही चल रहा था कि वह इस मौके पर क्या करें। पीछे तीनों को जाकर संभाले या अचार्य वर्धन से मुकाबला करें। अचार्य वर्धन से मुकाबला उसके बस की बात नहीं थी, मगर उसे कुछ तो करना था यहां।
उसने हिम्मत की और अपने हाथ में उनकी जो छड़ थी उसे लेकर उनकी तरफ चलने लगा। आचार्य वर्धन ने सामने से काले रंग का गोला छोड़ा। उस गोले से बचाव के लिए आकस्मिक ही आर्य ने अचार्य वर्धन वाली छड़ आगे कर दी। उन का छोड़ा गया गोला छड़ से आकर टकराया और निष्क्रिय हो गया। यह देखकर आर्य को उनके काले गोलों से बचने का तरीका मिल। साथ ही उसमें उत्साह भी आ गया जिससे वह तेजी से आचार्य वर्धन की ओर जाने लगा।
अचार्य वर्धन ने अपनी आंखें बंद की और उसके बाद वापिस छड़ को आगे कर दिया। इस बार उनकी छड़ से काले रंग के धुंए वाली तरंगे निकली। यह तरंगे ठीक वैसे ही थी जैसी कुछ देर पहले यहां बने बादलों में दिखाई देने को मिल रही थी। बस फर्क इतना था कि तब यह बादलों के रूप में थी और अब एक सीधी दिशा के रूप में।
इस हमले से भी बचाव करने के लिए आर्य ने आचार्य वर्धन की छड़ को आगे कर दिया। उसे बस इतना ही आता था। अगर उसे मंत्र या कुछ और आता तो वह उसे अजमाता। आचार्य वर्धन की छोड़ी गई काले धुएं वाली तरंग छड़ से आकर टकरा गई। टकराते ही ऊर्जा की एक तेज रोशनी हुई और पूरी जगह तेज रोशनी से भर गई। आर्य के हाथ में जो छड़ थी उससे अंगारे निकलने लगे। अंगारे निकलने का बिंदु वह था जहां आचार्य वर्धन की तरंग और आर्य के हाथ में पकड़ी उनकी छड़ का चमकता हिस्सा था।
कुछ देर के लिए सब ऐसा ही रहा। मगर फिर आचार्य वर्धन की तरंग आर्य पर हावी हुई और उसे उछाल फेंका। आर्य उछलता हुआ सीधे आचार्य ज्ञरक के पास जा गिरा।
सभी को गिराने के बाद आचार्य वर्धन फिर से दीवार की तरफ हुए और अपने दोनों हाथ फैलाकर खड़े हो गए। ऐसा करने पर उनकी छड़ से धुआं निकल कर उनके आसपास घुमा और फिर सामने दीवार में समाने लगा।
आचार्य ज्ञरक आर्य से बोले “उनके पास सबसे ताकतवर छड़ है। फिर उनकी खुद की ताकत भी कम नहीं है। हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते। हमारी कोई भी कोशिश उन पर काम नहीं आने वाली।”
“लेकिन हमें कोई तो रास्ता निकालना होगा...” आर्य बोला “अगर हमने उन्हें नहीं रोका तो आप जानते हैं क्या हो जाएगा। इस दुनिया पर शैतानों का कब्जा, जो सरासर गलत है। भले ही आचार्य वर्धन अपने लोगों की जान बचाना चाहते हैं मगर इसके लिए उन्हें इस रास्ते पर नहीं चलने दिया जा सकता।”
आचार्य ज्ञरक कुछ सोचने लगे। सोचने के बाद में वह खड़े होने की कोशिश करते हुए बोले “मेरे ख्याल से हमें आचार्य वर्धन की छड़ जो कि तुम्हारे हाथ में है, और मौत की छड़ जो कि मेरे हाथ में है, इन दोनों का एक साथ इस्तेमाल करना चाहिए। हो सकता है इन दोनों की ताकत मिलकर काली छड़ को हरा दें।”
“मगर मुझे छड़ को इस्तेमाल करना नहीं आता। इसके लिए शायद कुछ मंत्रों की आवश्यकता पड़ती है, जो मन ही मन बुदबुदाने पड़ते हैं।”
“उसकी फिक्र तुम मत करो...” आचार्य ज्ञरक अपनी जगह से खड़े हो चुके थे और आर्य भी। “तुम मेरे कंधे पर हाथ रख लेना और उसके बाद छड़ सामने की तरफ कर देना। मैं दोहरे जादुई मंत्रों का इस्तेमाल करूंगा। इनसे हमारी दोनों ही छड़ एक जैसा हमला करेंगी।”
“ठीक है मैं इसके लिए तैयार हूं।” आर्य ने सहमति भर दी।
दोनों ही धीमे धीमे कदमों से चलते हुए आगे आए और वहां आचार्य ज्ञरक ने वापिस आचार्य वर्धन को ललकारा “आचार्य वर्धन, आपके पास अभी भी मौका है। अपने इरादे बदल दीजिए। मत कीजिए ऐसा गलत काम। आपके इस गलत काम में ना तो हमारे आश्रम की भलाई है, ना ही इस दुनिया की। इसमें बस सिर्फ और सिर्फ हो विनाश ही है।”
आचार्य वर्धन ने फिर से अपनी क्रियाओं को रोक दिया। वह पीछे पलटे और दोनों को देखा। वह उन दोनों को देखते हुए बोले “मैंने आप लोगों को पहले ही कहा था, मैं अब अपने फैसले को बदल नहीं सकता। चाहे कुछ भी क्यों ना हो जाए।”
इतना कहकर उन्होंने अपनी छड़ फिर से सामने की तरफ कर दी। उन की छड़ से इस बार बिजली का हमला और काले धुएं की तरंग वाला हमला दोनों एक साथ निकले। आर्य ने आचार्य ज्ञरक के कंधे पर हाथ रख लिया। आचार्य ज्ञरक ने आंखें बंद की और कुछ मंत्र पढ़े। ऐसा करते ही उनकी और आर्य की छड़ से विचित्र तरह की तरंगे निकली। ऐसी तरंगे जिनमें सफेद लाल और सफेद, इस तरह से रोशनी का कर्म था। फिर इनके इर्द-गिर्द बिजली की घुमावदार लहर घूम रही थी। इधर से निकली गई यह तरंग सामने आचार्य वर्धन की ओर से आ रही तरंग से टकरा गई। एक बार फिर से वहां पर भयानक अंगारे निकले जहां पर इनका मिलन बिंदु बना था। अंगारे निकलने के साथ-साथ इस बार दोनों ही और की बिजली की तरंगे भी आपस में टकरा गई। बिजली की तरंगों की टक्कर जहां हुई थी वहां उनकी कुछ मात्रा तो नीचे जमीन की तरफ आकर्षित होने लगी, जबकि कुछ मात्रा आसपास की दीवारों पर, और बाकी की बची हुई मात्रा छत की तरफ आकर्षित हुई। काफी खतरनाक और भयावहक दृश्य पैदा हो गए थे।
अचार्य वर्धन ने इन दृश्यों को देखा और तुरंत अपनी आंखें बंद कर कुछ और मंत्र पढ़ दिए। उनके ऐसा करने से उनकी छड़ से दो अंधेरे की घूमती हुई परछाइयां निकली जो ऊपर छत की तरफ चली गई। वहां उन्होंने खुद को बिजली की लहरों से बचाया और बचाकर सीधे आचार्य ज्ञरक को धक्का दे मारा। आचार्य ज्ञरक के नीचे गिरते ही आचार्य वर्धन के सारे हमले का जोर आर्य की छड़ पर आ गया। जिसे संभालना आर्य और उसके छड़ की बस की बात नहीं थी। हमला तेजी से आगे आया और पूरा का पूरा आर्य पर ही गिर गया। आर्य के शरिर में बिजली की तेज सिरहन दोड़ी और वह दूर गिरता हुआ लगभग अपने होश खोने लगा। इधर आचार्य ज्ञरक को गिराने वाली दोनों ही परछाइयों ने उन्हें जकड़ लिया। उनसे अब हिला ढुला भी नहीं जा रहा था।
एक बार फिर से जीत जाने के बाद आचार्य वर्धन दुबारा दीवार की तरफ हो गए। वहां उन्होंने वापस अपनी आंखें बंद की और उसी क्रिया को करने लगे जो वह पहले करते आ रहे थे। इस बार भी उनकी छड़ से धुआं निकला जो पहले उनके इर्द-गिर्द घूमें और फिर सामने दीवार पर गिरने लगा।
आचार्य ज्ञरक दर्दनाक स्थिति में बोले “हमारी सभी कोशिशें नाकामयाब रह रही है।” वह आर्य से बोल रहे थे। “हमारे पास ऐसी कोई भी ताकत नहीं जो उनसे लड़ने के लिए हमारी मदद कर सके।” आर्य बेसुध होने वाली हालत में था तो उसने कुछ नहीं कहा। मगर तभी आचार्य ज्ञरक कुछ ऐसा बोले जिसे सुनकर आर्य में भी हौसला आ गया। “लगता है अब उस हथियार को आजमाने की बारी आ गई है जिसे उस खास मौके के लिए बनाया गया था जब शैतान इस धरती पर आकर काली छड़ी का इस्तेमाल करने पर उतारू हो जाए। इस हथियार को खासतौर पर भविष्यवाणी वाले लड़के के लिए बनाया गया था, मगर अभी उससे ज्यादा जरूरत हमें उस हथियार की है।”
आर्य ने यह सुनकर खुद में जोश भरा और आचार्य ज्ञरक से पुछा “आखिर आप किस हथियार की बात कर रहे हैं...”
आचार्य ज्ञरक बोले “हम उसे रोशनी की तलवार कहते हैं। उसे इसलिए बनाया गया था ताकि वह काली छड़ के होने वाले हमले का प्रतिकार कर सके। काली छड़ शैतानों की बड़ी ताकत में से एक है, ऐसे में उसका सामान करने के लिए हमें किसी ऐसी चीज की आवश्यकता थी जो काली छड़ का सामना कर सके, और हम लोगों ने मिलकर उस तलवार का निर्माण किया। रोशनी की उस तलवार को गुफा के दाएं हिस्से में रोशनी से भरे कमरे में रखा गया है।”
“मैं उसे वहां से ला सकता हूं...” आर्य ने खड़े होने की कोशिश की। पहली कोशिश में वह वापस गिर गया जबकि दूसरी कोशिश में वह लंगड़ाता हुआ उठ गया।
“यह इतना आसान नहीं रहने वाला...” आचार्य ज्ञरक बोले “जिस तरह से किले की सुरक्षा मजबूत है, उसी तरह से गुफा भी जादुई मंत्रों से सुरक्षित है।”
“आप फिक्र मत कीजिए... मेरे रास्ते में चाहे कितनी भी बाधाए क्यों ना जाए... मैं उसे हासिल करके ही रहूंगा।” आर्य ने पूरे जोश के साथ कहा था।
अचानक आचार्य ज्ञरक ने दीवार की तरफ देखा। वहां दीवार में अब दरारें उभरने लगी थी। अचार्य ज्ञरक बोले “मुझे यकीन है तुम कर लोगे, लेकिन तुम्हारे पास इतना समय नहीं है। इसलिए मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं तुम्हें कुछ ऐसा बताने जा रहा हूं जिसके बाद वह होगा जिसकी तुमने कल्पना नहीं की होगी। जरा मेरे पास आओ।”
आर्य लगडा़ता हुआ उनके पास चला गया। जैसे ही वह पास गया आचार्य ज्ञरक बोले “आचार्य वर्धन की छड़ को बनाते वक्त उसमें एक ऐसे मंत्र का इस्तेमाल किया गया था जो वक्त को बाधने की क्षमता रखता है। वह मंत्र उनकी छड़ में कैद है। अगर तुम उनकी छड़ को तोड़ दोगे तो वह मंत्र आजाद हो जाएगा, और कुछ समय के लिए पूरी दुनिया के समय को धीमा कर देगा। इतना धीमा कि लगभग 1 सेकंड तुम्हारे लिए 1 घंटे के बराबर हो जाएगा। ऐसा करने पर बाकी चीजें भी धीमी हो जाएगी सिवाय तुम्हारे और गुफा के। छड़ को तोड़ने वाले पर धीमे समय का असर नहीं पड़ता। जबकी गुफा वक्त के बंधन से आजाद है।”
“मगर मुझे आखिर अब करना क्या है?” आर्य चीजों को समझने की कोशिश कर रहा था।
“तुम्हें अचार्य वर्धन की छड़ को तोड़ना है.... इसके तोड़ते ही रुका हुआ समय शुरू हो जाएगा.... वो भी सिर्फ एक सेकेंड के लिए जो लगभग 1 घंटे के बराबर होगा। तुम्हें इस समय में गुफा में जाना है, उसके सुरक्षा चक्कर को पार करना है, और फिर तलवार को हासिल कर यहां आना है। जैसे ही एक सेकेंड पूरा होगा समय फिर से अपनी पहले वाली रफ्तार में चलने लगेगा। इससे आचार्य वर्धन भी कुछ देर के लिए अपने मकसद में धीमे पड़ जाएंगे, और हमें भी उनसे लड़ने के लिए प्राप्त क्षमता मिल जाएगी। चलो अब जल्दी करो। जल्दी उनकी छड़ को तोड़ दो।”
आर्य ने पूरी बात को समझा और छड़ को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। इसके बाद उसने अपनी आंखें बंद की और उसे जोर से घुटने पर दे मारा। उसके ऐसा करते ही एक ही झटके में छड़ टूट गई और कुछ ऐसा हुआ जिसकी उसने कल्पना नहीं की थी। अगर अचार्य ज्ञरक इसके बारे में उसे पहले ना बताते तो वह शायद इसे समझ ही नहीं पाता। यह विचित्र था। रुका हुआ समय विचित्र था।
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